महाकुंभ विशेष सनातन का विशाल अद्भुत महापर्व

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भोपाल: 25 जनवरी 2025

यह माना जाता है कि कुंभ के दौरान स्नान करना सभी पापों और बुराइयों का इलाज करता है और बाघ मोक्ष प्रदान करता है। यह भी माना जाता है कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है और कुंभ के समय जल सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति की सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरणों से भरा होता है। आइए जानते हैं महाकुंभ के बारे मे:

कुंभ मेला क्यों लगता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवता और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान अमृत का एक कलश (कुंभ) निकला, जिसे असुरों से बचाने के लिए देवता भागे। भागने के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। इसलिए, तब से इन स्थानों को पवित्र माना गया और इन पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा। अमृत की बूंदें हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में गिरी थीं। उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे मेला लगता है। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ मेला आयोजित होता है।

कुम्भ मेला लगने का धार्मिक महत्व और आध्यात्मिक महत्व

कुंभ मेला का उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि का अवसर प्रदान करना है। मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले में गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है, जहां ज्ञान, भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है।

12 साल की अंतराल में ही क्यों लगता है महाकुंभ

अब बात आती है कि महाकुंभ का पावन मेला हर बार 12 साल के अंतराल में ही क्यों लगता है, इसके पीछे कई धार्मिक मान्यता हैं. कहा जाता है कि कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब जो अमृत निकला इस अमृत को पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ, जो 12 दिनों तक चला. कहते हैं कि यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर थे, इसलिए कुंभ का मेला 12 सालों में लगता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, अमृत के छींटे 12 स्थान पर गिरे थे, जिनमें से चार पृथ्वी पर थे, इन चार स्थानों पर ही कुंभ का मेला लगता है. कई ज्योतिषियों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाता है, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होता है।

महाकुंभ के मेले में होता है शाही स्नान का महत्व

महाकुंभ के मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि इन नदियों के जल में इस दौरान अमृत के समान गुण होते हैं और सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद कुंभ मेले में स्नान करने से मिलता हैं. खासकर प्रयागराज में आयोजित होने वाले शाही स्नान का धार्मिक महत्व होता है, दरअसल यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती है, इसलिए प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान शाही स्नान करने का विशेष महत्व होता है. कहते हैं कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है।